DNB. गरियाबंद। जिला मुख्यालय के गाँधी मैदान में चल रहे शिवमहापुराण के तृतीय दिवस पर महन्त राधेश्याम जी व्यास के कथावाचन में हजारों की संख्या में खचाखच भरे पण्डाल में शिव पूजन की विधि बताते हुए उन्होंने बताया कि जिन्हें कोई भी मंत्र नही आता तो केवल ॐ नमः शिवाय के पंचामृत मंत्र के द्वारा पूजा स्वीकार हो जाता है। मगर महिलाओं को कभी भी ॐ नमः शिवाय का मंत्र नही बोलना चाहिए बल्कि ॐ शिवाय नमः और पुरुषों को ॐ नमः शिवाय का मंत्र बोलना चाहिए। सर्वप्रथम शिवलिंग काशी जी की नगरी मे फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी तिथि को प्रकट हुआ और स्वयं विष्णु जी ब्रम्हा जी द्वारा जल से लालचंदन से भांग, धतूरा, दूर्वा, बेलपत्र, शमीपत्र पुष्प आदि से ताली बजाते भजन गाते हुए विधिवत पूजा अर्चना करने लगे तो सदाशिव जी प्रसन्न हुए और वरदान दे दिया कि आज के रात को जगत में महाशिवरात्रि के नाम से जाना जाएगा। और जिस दिन इस पृथ्वी पर प्रथम बार काशी की नगरी में शिवलिंग का प्राकट्य हुआ उस दिन को प्रदोष कहा जाता है। जिस समय में सूरज के ढल जाने और चंद्रमा के उदय के पूर्व के सायंकाल को उनका प्राकट्य हुआ। उसको प्रदोषकाल कहा जाता है। प्रदोष के दिन व्रत रखकर जो भी भक्त अपने अपने घर मे मिट्टी के पार्थिव शिवलिंग बनाकर किसी विद्वान आचार्य से विधि पूर्वक पूजन कराते हैं। तो बहुत बड़ा फल मिलता है। खासकर अगहन महीने के आद्रा नक्षत्र पर जरूर शिव पूजन करना चाहिए। शिव भक्तों से उन्होंने कहा कि जो भक्त महाशिवरात्रि के दिन विधि विधान से पूजा करता है उसको वर्षभर 365 दिन के नियमित पूजा करने का लाभ मिल जाता है। शिव जी की पूजा ऊत्तर दिशा की ओर मुख करके ही करना चाहिए। और शिव जी की पूजा से पूर्व हमेशा जलहरि की पूजा पहले किया जाना चाहिये। सनातन धर्म शास्त्रों के अनुसार जलहरि से जल गिरने का हिस्सा ऊत्तर दिशा की ओर ही रखा जाता है। जलहरि में माँ भगवती पार्वती का निराकार रूप होता इसलिए तीन बार जल चढ़ाने चाहिए क्योंकि माँ भगवती के तीन रूप दुर्गा। लक्ष्मी और सरस्वती होते हैं।
पंडित श्री राधेश्याम जी व्यास ने बताया कि भगवान शिव को जल चढ़ाये जाने वाला लोटा ताम्बे का ही होना चाहिए स्टील का नही, धर्मग्रंथों के अनुसार ताम्बे के पात्र में जल अमृत हो जाता है, चाँदी के पात्र में दूध अमृत हो जाता है, और कांशे के पात्र में दही अमृत हो जाता है। अभिषेक के बाद तीन उंगलियों से लाल चन्दन से त्रिपुण्ड (तिलक) कर अक्षत, दूर्वा, बेलपत्र शमीपत्र, धतूरा, भाँग पुष्प आदि चढ़ाने चाहिए। अक्षत का अर्थ बताते हुए उन्होंने कहा चावल के साबुत दाने ही हो, टूटे हुए चावल पूजन में उपयोग नही लाना चाहिए। लक्षमी बीज भण्डार गरियाबंद के संचालक भूषन रिखीराम साहू परिवार द्वारा आयोजित कथा के तीसरे दिन व्यासपीठ से श्री राधेश्याम जी द्वारा वास्तुशास्त्र के ज्ञान देते हुए बताया कि जिस घर मे पिता के कमरे के ऊपर बच्चों का कमरा बना होता है उस घर मे शांति नही रहती। मेहमान का कमरा पूर्व या उत्तर दिशा में होना चाहिए। बरकत और मां बड़ाई होता है। घर के मुख्या या मालिक का कमरा दक्षिण दिशा में होने से अनुकूल वातावरण बनता है उन्नति होता है। घर मे मन्दिर पूर्व दिशा ईशान में होना चाहिए लेकिन पूर्व या ईशान दिशा में कभी भी तुलसी का पौधा नही लगाना चाहिए हानि होती है। जिस घर मे आग्नेय दिशा में रसोई बनी हुई हो और खाने बनाने वाले का मुख पूर्व दिशा में होगा तो उसके घर मे धन लक्ष्मी देवी के भंडार कभी खाली नही होंगे, घर मे सुख शांति बनी रहेगी, सम्मान बढेगा। बच्चों को पढ़ाई करते समय या धार्मिक ग्रंथों को पढ़ते समय हमेशा उत्तर दिशा की ओर मुख करके पढ़ाई करने से ज्ञानवान, बुद्धिमान और याददास्त मजबूत होता है। मकान की सीढ़ियां हमेशा दक्षिण दिशा में बनाना चाहिए। कथा का समापन 19 तारीख को विशाल भण्डारे के साथ होगा। आयोजक परिवार द्वारा 19 तारीख तक चलने वाले इस अदभुत कथा का लाभ अधिक से अधिक लोगों को लेने अपील किया गया है।