पटना हाइकोर्ट ने फर्जी डिग्री के आधार पर शिक्षकों की बहाली मामले पर बड़ा फैसला दिया है. हाईकोर्ट ने ऐसे फर्जी शिक्षकों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई करने का निर्देश दिया है. रंजीत पंडित की जनहित याचिका पर चीफ जस्टिस केवी चन्द्रन की खंडपीठ ने बुधवार 3 अप्रैल को यह फैसला सुनाया. 19 मार्च को ही सुनवाई कर ली गयी थी. हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा लिया था, जिसे आज सुनाया गया.
कोर्ट ने बाद में इस मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि ऐसे शिक्षक स्वयं त्यागपत्र दे देते हैं तो उनको क्षमादान दिया जा सकता है. कोर्ट ने इसके लिए 15 दिनों की समय सीमा तय की थी. कोर्ट के आदेश के बाद फर्जी डिग्री के आधार पर लगभग तीन हजार शिक्षकों ने स्वयं त्यागपत्र दे दिया था. बाद में इस मामले की जांच निगरानी विभाग ने शुरु की. बहुत सारे विश्वविद्यालयों व शिक्षा संस्थानों से फर्जी डिग्री प्राप्त करने वाले शिक्षकों की जांच शुरु की गयी. जांच में बहुत सफलता नहीं मिली.
कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि निर्धारित समय के भीतर कागजात व रिकॉर्ड प्रस्तुत नहीं करने वाले शिक्षकों के विरुद्ध कार्रवाई की जाए. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दीनू कुमार ने कोर्ट को बताया था कि बड़ी संख्या में जाली डिग्रियों के आधार पर शिक्षक राज्य में काम कर रहे हैं. साथ ही वे वेतन उठा रहे हैं. कोर्ट ने गड़बड़ियों की जांच कर जिम्मेदार लोगों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई करने का आदेश देते हुए मामले को निष्पादित कर दिया.
सर्वशिक्षा अभियान के तहत केंद्र सरकार ने शिक्षकों की नियुक्ति के लिए फंड दिया था. राज्य के द्वारा तीन स्तरीय पंचायत संस्थानों में शिक्षकों की नियुक्ति होनी थी. राज्य सरकार ने 2006 से ले कर 2015 तक शिक्षकों की नियुक्ति की गयी. इस जनहित याचिका में यही आरोप लगाया गया कि बड़ी संख्या में फर्जी डिग्री के आधार पर नियुक्ती हुई.
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