उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में आगे बढ़ रही धामी सरकार ने विधानसभा में विधेयक पेश करने से पहले कैबिनेट के सदस्यों को इसके सभी पहलुओं की जानकारी दी।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में रविवार देर शाम हुई कैबिनेट की बैठक में समान नागरिक संहिता के ड्राफ्ट पर मुहर लगा दी गई। साथ ही इससे संबंधित विधेयक को विधानसभा में प्रस्तुत करने का अनुमोदन भी कर दिया गया। सोमवार से शुरू हो रहे विधानसभा सत्र में मंगलवार को यह विधेयक प्रस्तुत किया जाएगा।
बैठक में हुआ ड्राफ्ट का प्रस्तुतीकरणमुख्यमंत्री आवास में हुई कैबिनेट की बैठक में मुख्य सचिव राधा रतूड़ी व विशेष सचिव गृह रिद्धिम अग्रवाल ने समान नागरिक संहिता के ड्राफ्ट का प्रस्तुतिकरण दिया। बैठक का एकमात्र विषय समान नागरिक संहिता के ड्राफ्ट पर चर्चा और इसके विविध पहलुओं से कैबिनेट के सदस्यों को अवगत कराना ही था।
विधानसभा सत्र आहूत होने के कारण कैबिनेट बैठक के संबंध में ब्रीफिंग नहीं की गई। लगभग 45 मिनट तक चली बैठक में प्रस्तुतिकरण के माध्यम से मंत्रिमंडल के सदस्यों को ड्राफ्ट के चारों खंडों की विस्तृत जानकारी दी गई।
बताया गया उद्देश्य
सूत्रों के अनुसार, प्रस्तुतीकरण के दौरान बताया गया कि राज्य में समान नागरिक संहिता लागू करने के पीछे उद्देश्य क्या है। साथ ही ड्राफ्ट में महिला अधिकारों के संरक्षण के विषय में शामिल संस्तुतियों पर प्रकाश डाला गया। कैबिनेट को जानकारी दी गई कि किस प्रकार प्रदेश में एक समान कानून लागू करने की दिशा में कदम बढ़ाए जाएंगे। सभी धर्मों में विवाह के लिए एक समान कानून लागू होगा। सभी वर्गों में पुत्र व पुत्री को संपत्ति में बराबर का अधिकार मिलेगा।
बच्चों में नहीं किया जाएगा भेदभाव संपत्ति के अधिकार के लिए जायज और नाजायज बच्चों में कोई भेद नहीं किया जाएगा। नाजायज बच्चे को भी उस दंपती की जैविक संतान माना जाएगा। यह भी स्पष्ट किया गया है कि गोद लिए गए बच्चों, सरोगेसी से जन्मे बच्चों व सहायक प्रजनन तकनीक (असिस्टेड रिप्रोडक्टिविटी टेक्नोलॉजी) के द्वारा जन्मे बच्चों में भी कोई भेद नहीं किया जाएगा। उन्हें भी जैविक संतान माना जाएगा।
संहिता में सम्मिलित संस्तुति के अनुसार, किसी व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात उसकी संपत्ति में पत्नी व बच्चों को समान अधिकार प्राप्त होगा। साथ ही उसके माता-पिता को भी संपत्ति में समान अधिकार देने की बात कही गई है। पुराने कानून में केवल माता को ही मरने वाले की संपत्ति में अधिकार प्राप्त था। यह भी स्पष्ट किया गया कि किसी भी धर्म में रीति-रिवाज की आड़ में यदि किसी महिला के अधिकारों का हनन होता है, तो वह स्वीकार नहीं होगा। मंत्रिमंडल को अवगत कराया गया कि संहिता में केवल राज्य से संबंधित विषयों को ही लिया गया है। जिन विषयों पर केंद्र के स्तर से कानून बने हुए हैं, उन्हें इसमें शामिल नहीं किया गया है। इसमें सभी धर्मों के हितों को सुरक्षित रखा गया है।बताया गया कि प्रदेश की जनजातियों की अपनी विशिष्ट पहचान, संस्कृति और परंपराएं हैं। विशेष यह कि जनजातियों का विषय केंद्र के अधिकार क्षेत्र का है। इस कारण जनजातियों को संहिता के दायरे से बाहर रखा गया है। बैठक में कैबिनेट मंत्री प्रेम चंद अग्रवाल, सतपाल महाराज, डा धन सिंह रावत, रेखा आर्या, गणेश जोशी के अलावा अपर मुख्य सचिव आनंद वर्धन व सचिव शैलेश बगौली भी उपस्थित रहे।